E-Rickshaw In India: इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) वर्तमान में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में सबसे अधिक बिकने वाला हिस्सा बन गया है, और यह ट्रेंड आने वाले वर्षों में और भी बढ़ जाएगी. उम्मीद है कि आने वाले समय भी ईवी का होगा और दशकों तक जारी रहेगा. मौजूदा ईवी ट्रेंड से बहुत पहले एक और इलेक्ट्रिक वाहन ने भारत में शहरी सार्वजनिक परिवहन में चुपचाप क्रांति ला दी थी, जिसके बारे में लोग बेहद ही कम जानते हैं. वह है भारत में आई ई-रिक्शा की क्रांति. जी हां, पहले हाथगाड़ी, फिर बैलगाड़ी, फिर पहिया वाहन, फिर तीन पहियों वाला रिक्शा और अब ई-रिक्शा का ट्रेंड आ गया है. क्या आप जानते हैं कि भारत में ई-रिक्शा किसने खोजा था?
आखिर भारत में कैसे आया ई-रिक्शा
ई-रिक्शा एक दशक से अधिक समय से भारतीय सड़कों पर चल रहे हैं और इससे कई लोगों को बेहतर जीवन जीने में मदद मिली है जो पहले रिक्शा चालक थे. भारत में ई-रिक्शा के पायनियर और आईआईटी-कानपुर से ग्रैजुएट और सायरा इलेक्ट्रिक ऑटो लिमिटेड के फाउंडर विजय कुमार कपूर हैं.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उद्यमी विजय कपूर ने कहा कि इलेक्ट्रिक रिक्शा के पीछे की प्रेरणा पैडल रिक्शा चालकों की दिन-प्रतिदिन की कठिनाइयों को देखने के बाद आई. उनके अनुसार, 2010 में उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक की भीड़-भाड़ वाली गलियों से गुजरने के लिए रिक्शा चालकों द्वारा किए गए गहन प्रयासों को देखा और एक ऐसे समाधान के बारे में सोचना शुरू कर दिया, जिसमें लगभग मेहनत जीरो लगे, जो पर्यावरण के अनुकूल हो और चलाने की लागत कम हो.
साल 2011 में मयूरी ई-रिक्शा मार्केट में आया
उन्होंने 2000 में निंबकर कृषि अनुसंधान संस्थान (एनएआरआई) के डॉ. अनिल कुमार राजवंशी द्वारा बनाए गए डिजाइन में सुधार किया और 2011 में मयूरी ई-रिक्शा ने सड़क पर अपनी शुरुआत की. सायरा इलेक्ट्रिक ऑटो के प्रबंध निदेशक नितिन कपूर के अनुसार, उनके पिता ने व्यापक शोध किया और चीन में लोडर में इस्तेमाल होने वाली मोटर को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाया.
उन्होंने प्रोडक्ट को अंतिम रूप देने से पहले ड्राइवरों की आवश्यकता के अनुसार फ्रंट ग्लास को डिजाइन करने से लेकर यात्रियों और रिक्शे की औसत ऊंचाई तक, हर छोटे-छोटे विवरणों पर ध्यान दिया. इसके बाद भी सायरा को कई चुनौतियों से पार पाना पड़ा. नितिन कपूर ने बताया, “शुरुआत में, मेरे पिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती ई-रिक्शा बनाने या चलाने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी थी. उदाहरण के लिए, ई-रिक्शा के टायर बनाने के लिए कोई स्थानीय निर्माता नहीं थे और हमें उन्हें खुद बनाना पड़ता था.”